मोहब्बत की निशानी ताजमहल के बारे में कौन नहीं जानता, प्रेम का प्रतीक ताजमहल
अपनी खूबसूरती के लिए देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। लेकिन आज यहाँ हम आपको ताजमहल के बारे में नहीं बल्कि फैजाबाद के नवाबों के शासन काल में निर्मित
इमारतों में कुछ
अलग सी दिखने वाली इमारत (जो कि अवध के तीसरे नबाब शुजाउद्दौला
का मकबरा गुलाबबाड़ी के नाम से मशहूर है) के बारे में बताने जा रहे हैं।
जी
हाँ हम बात कर रहे है गुलाबबाड़ी की, जिसका निर्माण स्वयं नवाब शुजाउद्दौला ने 1719 से 1775 ई. में कराया था। सन 1753 ई. में नवाब शुजाउद्दौला के पिता नवाब सफ़दरजंग का इंतकाल हो जाने के बाद उनका पार्थिव शरीर भी कुछ समय
के लिये यहाँ रखा गया था। जो बाद में दिल्ली ले जाया गया,
लेकिन कब्र के निशान आज भी यहाँ मौजूद हैं। 1775 ई. में इंतकाल होने के बाद नवाब शुजाउद्दौला को भी यही सुपुर्दे खाक
किया गया। अवध
में तीन नवाब हुए पहले नवाब बुर्हनुल मुल्क सआदत खां दुसरे नवाब सफ़दर जंग और
तीसरे नबाब शुजाउद्दौला नवाब सफ़दरजंग के बेटे थे। उनका असली नाम जलालुद्दीन
हैदर था। उनको शुजाउद्दौला का ख़िताब अवध के सूबेदार नियुक्त किये जाने के पहले ही
मुग़ल के बादशाह अहमद शाह ने दिया था। शुजाउद्दौला को मुग़ल
हुकूमत के पतन और अफरा-तफरी के पूरा आभास हो गया था। इसलिए अवध का सूबेदार न्युक्त
किया जाने के बाद उन्होंने दिल्ली की राजनीति से दूर
रहना ही उचित समझा और अपना पूरा ध्यान अवध को समृद्धशाली
राज्य बनाने पर केन्द्रित किया। उनके समय में अवध का राज्य इतना शक्तिशाली हो गया
था कि दूसरे-दूसरे सूबेदार भी उनसे सहायता माँगा करते थे। अब दिल्ली के फनकारों, साहित्यकारों ने अवध में
बसना शुरू कर दिया। उस समय ईस्ट इण्डिया कंपनी के बढ़ते
प्रभाव को देखते हुए अवध को सुरक्षित करने की चिंता नवाब शुजाउद्दौला को सताने लगी। इसीलिये 1764 में उन्होंने मीर कासिम के साथ अंग्रेजों
से युद्ध लड़ा लेकिन दुर्भाग्य हार का मुंह देखना पड़ा। और तावान के रूप में भारी रकम अंग्रेजों को देनी पडी रकम भी इतनी बड़ी थी कि उनकी बेगम बहू बेगम साहिबा को अपने सुहाग की
निशानी नाक की कील भी बेचनी पड़ी। इस हार के बावजूद भी नवाब साहब ने हिम्मत नहीं
हारी और कोड़ा जहानाबाद में मरहटों की सहायता से दूसरी बार अंग्रेजों से युद्ध
किया लेकिन भाग्य ने इस बार भी साथ नही दिया और उनको अंग्रेजो से कड़ी और अनुचित
शर्तों पर संधि करनी पड़ी। अवध के दो जनपदों कोड़ा और इलाहाबाद अंग्रेजों को देने
पड़े और साथ में 50 लाख रूपये तावान के रूप
में देने पड़े। नवाब शुजाउद्दौला का कार्य काल सन 1753 से 1775 तक का माना गया है नवाब शुजाउद्दौला 23 वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठ शासन प्रारंभ किया।
आज
फैजाबाद में जितनी भी ऐतिहासिक इमारतें है वो शुजाउद्दौला या उनके मातहतो के
द्वारा निर्मित है गुलाबबाड़ी की नायाब खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक थे। गुलाबबाड़ी के जो दर (दरवाज़ा) बने है उनके बारे कहा जाता है की वह एक सीध में बने है और लखनऊ के हुसैनाबाद
तक एक सीध में देखे जा सकते थे। नवाब शुजाउद्दौला इसमें आराम
किया करते थे और यहीं से रियासत पर नज़र रखते थे लखौरी-ईंट से निर्मित नायाब
खूबसूरती लिये गुलाबबाड़ी में गुलाब के फूलों की कई दुर्लभ किस्में हुआ करती थी।
जिसमे नवाब साहब सैर किया करते थे। गुलाबबाड़ी के मक़बरे
में नवाब शुजाउद्दौला के वालिद नवाब सफ़दरजंग
उनकी माँ मोती बेगम और खुद नवाब शुजाउद्दौला की कब्र लाइन
से बनी है कुछ समय बाद नवाब सफ़दरजंग की कब्र को दिल्ली भेज दिया गया। गुलाबबाड़ी
में एक इमामबाड़ा और एक मस्जिद भी है जहाँ नवाब साहब नमाज अदा किया करते थे। जहाँ
आज भी मजलिसे और महफिले हुआ करती है।
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